Beeti yaad


केसे कह दू हाँ,थोड़ा वक़्त लगता है
दिल की बात कागज़ में उतारना मुश्किल होता है
एक पल का फैसला अगर जीना कर दे दुशवार
इस लम्हे को सजाने में डर लगता है



सीचा है मैंने अपनी ज़िन्दगी को हर पल
इसको सूखे पे कल दम तोड़ते देखा है
लगती है आसान,पर होती नहीं ये ज़िन्दगी
कश्ती को किनारा दिलाने का मनन नहीं करता है



नजरो को ऐसे झुका के मैंने
अपनी बेबसी को कैद कर रखा है
उठने से पहले हज़ार बार ये सोचती
जो आ गया कल सामने,एक डर कहता है



आज सूरज को देखा जब पहली बार इन आँखों से
गलती ये हो गयी,उस वक़्त तुम थे सामने
अब ऐसे दो राहों में खड़ा कर मुझको
कहते हो आकाश में मेरे संग उड़ के देखो


जब थामा ये साथ मैंने तुमको साथ ले के
परिन्दों का साथ जैसा लगा ऊचे आसमान में
जहा मैंने पहली बार अपने को खुश होता पाया
एक नई ज़िन्दगी को नाम देते हुए खुद को पहचाना

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